आर्थिक संकट से जूझ रहे पड़ोसी मुल्क श्रीलंका की मदद करेगा भारत
आकाश ज्ञान वाटिका, 30 मार्च 2022, बुधवार, नई दिल्ली। भारत का पड़ोसी मुल्क श्रीलंका सबसे खतरनाक आर्थिक गिरावट से जूझ रहा है। श्रीलंका का विदेश भंडार इस वक्त अपने ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। घटते विदेशी मुद्रा भंडार, बेतहाशा बढ़ती कीमतों और भोजन सामग्री की कमी की संभावनाओं के बीच राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे की सरकार कुछ भी करने को तैयार है। श्रीलंका के नेता इन हालात के लिए कोरोना को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं, लेकिन आलोचक इसके लिए सरकार को ही दोषी ठहरा रहे हैं। विपत्ति काल में श्रीलंका सरकार की निगाह भारत की ओर है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर श्रीलंका के मित्र देश चीन और पाकिस्तान इस मामले में सक्रिय क्यों नहीं है ? इसके पीछे के बड़े कारण क्या है? क्या भारत की मदद से कोलम्बो और नई दिल्ली के रिश्तों में मधुरता आएगी ? दोनों देश अपने मतभेदों को भुलाकर फिर एक-दूसरे के निकट आएंगे ?
आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के स्टैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम के निदेशक प्रोo हर्ष वी पंत का कहना है कि श्रीलंका के आर्थिक संकट का असर उसके विदेश नीति पर भी पड़ रहा है। श्रीलंका की विदेश नीति में बदलाव देखने को मिल रहा है। यही कारण है कि चीन की ओर जाता श्रीलंका अब भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने की जुगत में है। इसके पीछे ड्रैगन की कर्ज नीति और भारत की मोदी सरकार की पड़ोसी मुल्कों के साथ सकारात्मक रुख की नीति जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में नई दिल्ली और कोलम्बो के रिश्ते बहुत मधुर नहीं रहे हैं। खासकर मैत्रीपाला सिरीसेना के कार्यकाल में भारत और श्रीलंका के संबंधों में गिरावट आई है। इसकी वजह यह थी कि सिरीसेना का झुकाव चीन की ओर था।
प्रोo पंत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेबरहुड फर्स्ट पालिसी भारत के पड़ोसी मुल्कों के साथ बेहतर संबंध बनाने की पहल रंग लाई। श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के बाद भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की श्रीलंका यात्रा इसी कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। श्रीलंका में नई सरकार के गठन के ठीक बाद भारत ने सभी मतभेदों को भुलाकर एक सकारात्मक पहल की। उन्होंने गोटाभाया राजपक्षे से मुलाकात की और उन्हें भारत आने का पीएम मोदी का निमंत्रण भी दिया, जबकि गोटाभाया का झुकान चीन की ओर था। इसके बाद गोटाभाया ने भारत का दौरा किया। इस दौरान दोनों देशों के बीच गर्मजोशी देखने को मिली। यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत थी। उन्होंने कहा कि जयशंकर का श्रीलंका जाना काफी अहम रहा। इसके बाद मोदी के न्यौते पर गोटाभाया का भारत आना बेहद अहम था। इसके बाद दोनों देशों के बीच बातचीत अच्छी चली। संबंधों में सुधार के संकेत देखे गए।
उन्होंने कहा कि श्रीलंका कर्ज के दलदल में बुरी तरह से फंस चुका है। वर्ष 2010 में श्रीलंका पर सकल राष्ट्रीय आय (जीएनपी) का 39 फीसद कर्ज था। नौ वर्ष बाद यानी वर्ष 2019 में यह कर्ज बढ़कर 69 फीसद हो गया। श्रीलंका में बड़ा सकंट तब उत्पन्न हुआ, जब वर्ष 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 2.8 अरब डालर रह गया। श्रीलंका चीन के बोझ तले दब गया है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 4.06 अरब डालर कर्ज चीन से लिया कुल कर्ज का 60 फीसद है।
श्रीलंका का चीन प्रेम का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि निवेश के मामले में भारत चीन से पीछे है। चीन ने श्रीलंका में वर्ष 2010 से 2019 के बीच 23.6 फीसद निवेश किया। इसी दौरान भारत का निवेश 10.4 फीसद रहा। यानी चीन ने भारत की तुलना में दोगुना निवेश किया। श्रीलंका ने भारत जापान का ईस्ट कंटेनर टर्मिनल प्रोजेक्ट रद कर दिया।
श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। इस बंदरगाह को चीन को पट्टे पर दिए जाने से भारत की भी चिंताएं बढ़ गई थीं। यह बंदरगाह भारत के लिए एक बड़ी समस्या बनकर खड़ा हो रहा है। अगर यह बंदरगाह चीन के पास 99 साल के लिए रह गया तो उसकी नौसेना का पूरा ध्यान वहां पर होगा। खास बात यह है कि यह हिंद महासागर क्षेत्र के लिए एक गेटवे है। वहीं, चीन के कर्ज से श्रीलंका की हालत भी काफी खराब हो गई है। इस कारण भी गोटोभाया राजपक्षे भारत आए और रिश्ते बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
श्रीलंका को संकट से निकालने की जिम्मेदारी राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे और उनके भाई महिंदा राजपक्षे और बासिल राजपक्षे के पास है। महिंदा श्रीलंका में दो बार देश के राष्ट्रपति रह चुके है। इस वक्त वह देश के प्रधानमंत्री है। महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए चीन और श्रीलंका के रिश्ते काफी मजबूत हुए थे। बासिल राजपक्षे अमेरिकी नागरिक हैं। मौजूदा समय में वह श्रीलंका के वित्त मंत्री हैं। बासिल को वित्त मंत्री बनाने के लिए श्रीलंका सरकार ने संविधान में संशोधन किया था। इसके तहत विदेशी नागरिकों के लिए संसद का सदस्य बनने का रास्ता खोला गया था। अब श्रीलंका को इस आर्थिक संकट से उबारने की जिम्मेदारी श्रीलंका की सत्ता में बैठे इस राजनीतिक परिवार पर है।