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विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल-2022 : सुमेधा सेनगुप्ता के पारंपरिक ओडिसी नृत्य ने विरासत के आँगन को सुरमई बना दिया

राजस्थान के लंगा मंगनियार और कालबेलिया प्रस्तुतियों ने विरासत के लोगों का मन मोह लिया

विरासत में देहरादून के स्कूली छात्र-छात्राओं के लिए आर्ट एंड क्राफ्ट कार्यशाला का आयोजन किया गया

विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2022 के सातवें दिन की कुछ झलकियाँ

आकाश ज्ञान वाटिका, 21 अप्रैल 2022, गुरूवार, देहरादून। विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2022 के सातवें दिन की शुरुआत डॉ. बी.आर. अंबेडकर स्टेडियम (कौलागढ़ रोड) देहरादून में आर्ट एंड क्राफ्ट कार्यशाला के साथ हुआ। इस वर्कशॉप में देहरादून के 7 स्कूलों के लगभग 150 छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया। इस कार्यशाला के अंतर्गत छात्र छात्राओं ने शिल्पकार मास्टर के साथ मिलकर विभिन्न प्रकार के कला और आर्ट बनाने का प्रशिक्षण लिया। इस कार्यशाला में मिट्टी के बर्तन बनाना, जुट की गुड़िया बनाना, गुब्बारे पर कलाकृतियाँ उकेरना, फेस आर्ट, मंदाना आर्ट, ब्लॉक प्रिंटिंग एवं पतंग बनाना जैसे कला शामिल थे।

आर्ट एंड क्राफ्ट कार्यशाला

सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं सुमेधा सेनगुप्ता द्वारा ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किया गया जिसमें पखावज पर प्रफुल्ल मंगराज, सितार पर जावेद, गायक सरोज मोहंती सहयोगी कलाकार रहे। ओडिसी नृत्य भगवान जगन्नाथ की स्तुति के साथ शुरू हुआ एवं उनकी अगली प्रस्तुति शंकरवर्णम पल्लवी थी जिसकी रचना राग शंखवर्णी में गुरु केलुचरण महापात्र ने एक ताल में की थी वही अंमित प्रस्तुति गुरु केलुचरण महापात्र द्वारा रचित अर्धनारीश्वर का चित्रण था।

सुमेधा सेनगुप्ता द्वारा किया गया ओडिसी नृत्य प्रस्तुत

सुमेधा सेनगुप्ता कोलकाता की एक प्रसिद्ध ओडिसी नर्तकी है एवं वे पांच साल की उम्र से ही प्रसिद्ध गुरु श्री गिरिधारी नायक के मार्गदर्शन में अपनी यात्रा शुरू की। उन्होंने ओडिसी नृत्य को कई अन्य गुरुओं से प्रशिक्षण लेने के बाद, अपना एक नृत्य विद्यालय “आँगन“ की शुरुआत की। सुमेधा सेनगुप्ता अपने “आँगन“ के विद्यार्थियों को इस खूबसूरत पारंपरिक ओडिसी नृत्यों कि प्रशिक्षित देती है जो वर्तमान में रांची में है। उन्होंने रवींद्रनाथ के कई डांस को भी कोरियोग्राफ किया है और संस्कृति मंत्रालय के लिए “उर्मिला“ का निर्देशन भी किया है। वर्तमान में सुमेधा संस्कृति मंत्रालय के तहत इंदिरा गांधी संस्कृति कला केंद्र मे एक अधिकारी के रूप में काम करती हैं।

वह कला और संगीत की सार्वभौमिकता में विश्वास करती हैं और उनका मानना है कि एक कालाकार को विभिन्न प्रकार के कलाओ के संपर्क में आने के बाद उसकी आत्मा विभिन्न प्रकार से पोषित होती है जो एक कलाकार को उच्च स्तर पर ले जाती है और अपने समुदाय में सद्भावना फैलाती है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में राजस्थान के पंधे खान अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार मंच द्वारा लंगा मंगनियार लोक संगीत एवं कालबेलिया नृत्य प्रस्तुत किया गया। पंधे खान के समूह के गायक मुश्ताक खान, शाय कहनी एवं दीन मोहम्मद थे वही सिद्दीक खान वोकल में, खड़ताल पर थानु खान एवं ढोलकी पर देउ खान ने अपनी प्रस्तुति दी। पंधे खान अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार मंच द्वारा प्रस्तुतियों में ‘केसरिया बलमा पधारो म्हारे देश…’ और फिर सूफी कलाम ‘दामा दम मस्त कलंदर’ के साथ कार्यकम्र शुरू किया गया।

लंगा मंगनियार लोक संगीत एवं कालबेलिया नृत्य

राजस्थान के कलाकारों द्वारा इस प्रस्तुति ने पुर विरासत के दर्शको को अपने संगीत के धुन से सराबोर कर दिया। बताते चले कि मंगनहार भारत में राजस्थान के रेगिस्तान में पाया जाने वाला एक समुदाय है जो ज्यादातर पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्र सिंध प्रांत के बाड़मेर, जैसलमेर और सांघार जिलों से आते है एवं वे लंघा समुदाय के साथ-साथ अपने लोक संगीत के लिए भी जाने जाते हैं जो एक पारंपरिक पेशेवर संगीतकारों के समूह है। मंगनहार थार रेगिस्तान के लोक संगीतकार हैं एवं उन्होंने अपने गीतों को पीढ़ी दर पीढ़ी रेगिस्तान के मौखिक इतिहास के रूप में प्रस्तुत किया है। उनके सभी वाद्ययंत्र पारंपरिक हैं और अभी भी उनके उपयोग किए जाते हैं वही कमाइचा, आम की लकड़ी से बना 17-तार का एक अनूठा झुका हुआ वाद्य यंत्र है, इसका गोलाकार गुंजयमान यंत्र बकरी की खाल से ढका होता है एवं वे सभी पारंपरिक वाद्ययंत्र आज भी उपयोग किए जाते है ।

वही पंधे खान अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार मंच द्वारा अगली प्रस्तुति कालबेलिया नृत्य किया गया जिसमें जशोदा सपेराण और नैना सपेराणी ने अपना नृत्य प्रस्तुत किया। कालबेलिया नृत्य कालबेलिया संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, यह नृत्य और गीत कालबेलियों के लिए गर्व की बात है और यह उनके पहचान का प्रतीक भी हैं। बताते चले कि यह कालबेलिया राजस्थान के थार रेगिस्तान से सांप पकड़ने वाली एक जनजाति है और नृत्य उनकी संस्कृति का एक अभिन्न भाग है जो पुरुषों और महिलाओं द्वारा किया जाता है। उन्हें सपेरा, जोगिरा, गट्टीवाला और पूगीवारा भी कहा जाता है, इसलिए कालबेलिया समुदाय की नृत्य, चालें और वेश-भूषा नागों से मिलती जुलती है जो खानाबदोश जीवन जीने के प्रतिक भी है।

इस नृत्य में पुरुष प्रतिभागी संगीत वाद्ययंत्र बजाते हैं जिसमें पुंगी जो पारंपरिक रूप से सांपों को पकड़ने के लिए बजाया जाने वाला एक लकड़ी का वाद्य यंत्र है वही डफली, खंजरी, मोरचांग, खुरालियो और ढोलक जैसे वाद्ययंत्र के धुन पर नर्तकी अपनी प्रस्तुतियाँ देती है।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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