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हरियाली-खुशहाली एवं प्रकृति-प्रेम का प्रतीक “हरेला” की हार्दिक शुभ-कामनायें : “आकाश ज्ञान वाटिका परिवार” द्वारा किया गया वृक्षारोपण

[box type=”shadow” ]“आकाश ज्ञान वाटिका परिवार की और से सभी सम्मानित प्रदेश/क्षेत्र वासियों को उत्तराखंड के लोकपर्व, हरियाली-खुशहाली एवं प्रकृति-प्रेम का प्रतीक “हरेला” की हार्दिक शुभ-कामनायें। ईश्वर से वह यही प्रार्थना करते हैं कि सभी को सपरिवार सुखी, स्वस्थ्य, समृद्ध बनाये रखें, हरा-भरा जीवन प्रदान करें एवं आपसी भाईचारा निरन्तर बढ़ता रहे।” इन्हीं शुभ-कामनाओं के साथ…….. घनश्याम चंद्र जोशी, सम्पादक, आकाश ज्ञान वाटिका, न्यूज़ पोर्टल[/box]

आकाश ज्ञान वाटिका, शुक्रवार, 17 जुलाई, 2020, देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में विभिन्न प्रकार के पर्व मनाये जाते हैं, जिनमें से कई पर्व प्रकृति से जुड़े होते हैं। ऐसा ही एक पर्व है- उत्तराखंड का लोक पर्व “हरेला”। यह त्यौहार संपन्नता, हरियाली, पशुपालन और पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देता है। उत्तराखण्ड़ में मनाये जाने वाले लोक त्यौहारों में से एक यह त्यौहार लगभग हर साल सोलह जुलाई को मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि हिन्दू पंचांग के अनुसार, जब सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश करता है तो उसे कर्क संक्रांति कहते है, तिथि-क्षय या तिथि वृद्धि के कारण ही यह पर्व एक दिन आगे-पीछे हो जाता है। इस दिन सभी लोग प्रकृति को अवश्य याद करते हैं। इस दिन वृहद् स्तर पर जगह-जगह पर वृक्षारोपण किया जाता है।
इस बार हरेले के अवसर पर उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में 2.75 लाख पौंधों का वृक्षारोपण होना निर्धारित किया गया है। सभी 13 जिलों में  रिकार्ड 30,60,315 पौधे लगाए गए। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रदेशवासियों से हरेला पर कम से कम एक पौधा जरूर लगाने का आह्वान किया था। प्रदेशभर में वन, उद्यान, प्रशासन के साथ ही आमजन ने भी वृक्षारोपण में बढ़चढ़ कर भागीदारी की।
पर्यावरण को बचाने के लिये हम सभी को काम से काम एक पेड़ लगाकर उसकी रेख-देख भी अवश्य करनी चाहिये, उस पेड़ को भी अपने बच्चे के समान ही समझकर उसका पालन-पोषण करना चाहिये ताकि वह पेड़ बड़ा होकर हमें जीवनदायिनी ऑक्सीजन दे सके।

[box type=”shadow” ]इस पर्व को मनाने के लिये दस दिन पूर्व घरों में पूजा स्थान में किसी जगह या छोटी डलियों में मिट्टी बिछाकर सात प्रकार के बीज जैसे-गेहूँ, जौं, मूँग, उडद, मक्का, गहत, सरसों आदि बोये जाते हैं और नौ दिनों तक उसमें सुबह स्नान करने के उपरान्त जल से उसे सींचा जाता है। नौ दिनों तक सींचित करने के बाद हरेले के पर्व के एक दिन पहले इसको बांधकर इसमें रक्षा का धागा लपेटा जाता है और दो या पाँच फल रखकर इसकी गुडाई की जाती है, फिर हरेले के दिन इसको काटकर पूजा-अर्चना करने के उपरान्त बड़े बुजुर्गों के द्वारा सभी पारिवारिक लोगों को आशीर्वाद के साथ पूजा जाता है। घर के लोगों के सिर या कानों में रखने से पूर्व इसे दरवाजों के दोनों ओर या दरवाजे के ऊपर भी इसे सजाया जाता है। हरेला पूजन के समय आशीष देने की परम्परा है। इसके बोल भी लोगों के दिलों को छू जाते हैं। [/box]
हरेले के पर्व का ज्यादा महत्व उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में माना जाता है, वहाँ पर इसी दिन से श्रावण मास का आरम्भ भी होता है।

[box type=”shadow” ] “हरेला” पर आशीष के तौर पर दिये जाने वाले वचन:
“जी रये जागि रये,
यो दिन-मास-बार भेटनै रये,
धरती जस आगव, आकाश जस चाकव होये,
सियक जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो, दूब जस पंगुरिये,
हिमालय में ह्यो, गंगा ज्यू में पाणी रौन तक बचि रये,
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये।”

बुजुर्गों द्वारा दिए जाने वाले इस आशीष वचन का अर्थ है: “तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार-माह तुम्हारे जीवन में आता रहे। तुम्हें धरती जैसा विस्तार और आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो। सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले। वंश, परिवार दूब की तरह पनपे। हिमालय में हिम और गंगा में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो।”

यह आशीष वचन कुमाऊँनी भाषा में बच्चों को दिये जाते हैं, जिससे बच्चों को अनंत सुख-सौभाग्य की अनुभूति होती है। जब बच्चों को बुजुर्गों के द्वारा आशीष वचन दिये जाते हैं, तो वह वचन बच्चों के जीवन को सुखदायी बना देते हैं और फिर हरेले के पर्व पर दिये जाने वाले विशेष वचन अपने-आप में अनमोल होते हैं।[/box]

“हरेला” के लिये कुछ लोगों का मानना है कि इसमें बोये जाने वाले सात प्रकार के बीज सात जन्मों के प्रतीक होते हैं।

 [box type=”shadow” ]”आकाश शिक्षा एवं सांस्कृतिक विकास समिति” द्वारा किया गया वृक्षारोपण

हरेले के दिन वृक्षारोपण का महत्व सबसे अधिक माना जाता है, इसलिये इस दिन हर तरफ वृक्षारोपण किया जाता है। वृक्ष हमारे जीवन के लिये सबसे अधिक उपयोगी हैं, यह हर इंसान को ज्ञात होना चाहिये, तभी प्रकृति में पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
प्रकृति-प्रेम और हरियाली का प्रतीक हरेला पर्व के शुभ अवसर पर “आकाश ज्ञान वाटिका परिवार” एवं ”आकाश शिक्षा एवं सांस्कृतिक विकास समिति” द्वारा शहर में अलग-अलग जगहों पर प्रकृति-प्रेमी जनों के साथ मिलकर वृक्षारोपण का कार्य करने के उपरांत अपने निवास में विभिन्न प्रकार के फूलों के एवं औषधीय उप[योग वाले पौधे लगाए गए।[/box]

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Ghanshyam Chandra Joshi

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