उत्तराखण्ड के रिश्तों में घोलती हैं मिठास, ‘ऐपण गर्ल’ मीनाक्षी खाती द्वारा बनाई गई राखियाँ
केवल एक सोच समाज में बदलाव ला सकती है।
आकाश ज्ञान वाटिका, १ अगस्त २०२०, शनिवार। उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर की रहने वाली मीनाक्षी खाती ने पारंपरिक रूप से दरवाजों की देहली व मंदिर पर बनने वाली ऐपण कला को राखी की शक्ल देकर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के वोकल फॉर लोकल नारे को सार्थक कर दिखाया है।
मीनाक्षी ने “ऐपण राखी” का उत्पादन ऐसे समय में शुरु किया है, जब भारत का चीन के साथ सीमा विवाद चल रहा है तथा दोनों देशों ने सीमा पर भारी सैन्य तैनाती की है तथा पूरे देश में चीनी समान के बहिष्कार करने की एक मुहिम छिड़ी हुई हैं, ऐसे में “ऐपण राखी” चीन की बनी राखियों का एक बेहतरीन विकल्प साबित हो रही है।
[box type=”shadow” ]इन राखियों की खासियत यह है कि:
- इनमें उत्तराखंड के रिश्तों की मिठास, राखी में अंकित नामों से महसूस होती है जैसे ददा, बैणी, भुला, भैजी, बौज्यू, दादी आदि।
- ऐपण राखियाँ देखने में बहुत आकर्षक है, यही कारण है कि इन राखियों की माँग देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बहुत बड़ी मात्रा में आ रही है।
- पर्यावरण की दृष्टि से ये राखियाँ सुरक्षित हैं क्योंकि इन राखियों में प्लास्टिक का प्रयोग नहीं किया गया है।[/box]
बता दें मीनाक्षी खाती “ऐपण गर्ल” के नाम से भी जानी जाती है तथा ऐपण कला में निरंतर नये प्रयोग करती रहती हैं।
“मीनाकृति – द ऐपण प्रोजेक्ट” के जरिए आप भी ऑनलाइन इन राखियों को मंगवा सकतें है।
केवल एक सोच समाज में बदलाव ला सकती है।……. कैसे ?
- बहुत से लोग भारत में यह सोच रखतें है कि चीनी वस्तुओं का विकल्प नहीं हो सकता, ऐसी सोच को एक छोटा सा जबाब है ये ऐपण राखी।
साभार: श्री सन्दीप डोबरियाल
[box type=”shadow” ]ऐपण से बनाई पहचान – ऐपण गर्ल, मीनाक्षी खाती
“हमें अपनी इस लोक विरासत को नई पहचान दिलाने के लिए कुछ मार्डन प्रयोग करने होंगे ताकि ये कला लोगों तक आसानी से पहुँच सके। मैंने ऐपण के जरिये छोटी सी कोशिश की है कि अपनी लोक-संस्कृति को पुनर्जीवित कर हर दूसरे लोगों तक पहुँचा सकूँ।”……. मीनाक्षी खाती, संस्थापक एवं निदेशक, मीनाकृति ‘द ऐपण प्रोजेक्ट’
साभार: The Inheritance of Mountains [/box]
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