द्वापर में प्राकट्य हुए महान अवतार : श्रीकृष्ण
- श्रीकृष्ण : बुलंद हौसलों की धधकती मशाल
- मुसीबतों से घबराओ नहीं, उनका डटकर सामना करो।
- अपने जीवन की हर अमावस्या को पूर्णिमा में परिणित करने का जज्बा रखो।
आकाश ज्ञान वाटिका, 29 अगस्त 2021, शनिवार, देहरादून। महापुरुषों का आदर्शमयी जीवन भी हमें यही प्रेरणा देता है। उनके हौंसलो की गर्जना के आगे प्रत्येक परेशानी सहम कर लौट जाती थी। उनके संयम और धैर्य की शीतलता से बड़े-बड़े ज्वालामुखी शांत हो जाते थे। उनकी सकारात्मक सोच दुःख की कालिमा में भी सुख का उजाला कर देती थी।
द्वापर में भी ऐसे ही एक महान अवतार का प्राकट्य हुआ था, जिन्हें आज संसार भगवान श्री कृष्ण के नाम से पूजता है। उनका सम्पूर्ण जीवन संघर्ष की एक खुली किताब है। जन्म से लेकर देहावसान तक, शायद ही उनके जीवन में कभी सुख-चौन की घड़ियाँ आईं हों। लेकिन अपने बुलंद इरादों से उन्होंने हर विलापमय क्षण को मांगल्य के क्षणों में तब्दील कर दिया। हर ढल चुकी शाम को दोपहर की तरह स्वर्णिम बना दिया। उन्होंने दिखा दिया इस निराश दुनिया को, कि कैसे सर्प के सिर से जहर की जगह मणि की प्राप्ति की जा सकती है। कैसे सागर की उफनती लहरों में डूबने की जगह, उन पर तैरा जा सकता है।
आइए, हम भी उनकी जीवन-लीला से अपने लिए प्रेरणा के कुछ रत्न चुनें। सबसे पहले, हम उनके जन्म का समय देखें। रात्रि 12:00 बजे। यह ऐसा समय है, जब विराट सूर्य भी अंधकार की गहरी खाई में खो जाता है। यह समय देवताओं के रमण का नहीं, अपितु भूत-प्रेतों के नग्न तांडव का होता है। चंद शब्दों में समेटें तो, रात्रि के बारह बजे संसार की प्रत्येक क्रिया काली होती है।लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने यह कालिमा नहीं देखी। अगर कुछ देखा तो वह थी चंद्रमा की उज्जवल रौशनी। उन्होंने घोर रात्रि को अपने जन्म का लगन चुनकर, यह दिखा दिया कि इंसान की सोच ही समय को अनुकूल या प्रतिकूल बनाती है। हम समय के गुलाम नहीं, बल्कि वह ही हमारा गुलाम है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म स्थल भी क्या था ? कारागार। अत्यंत अशोभनीय स्थान।यहाँपर जन्म लेकर उन्होंने सारी दुनिया को दिखा दिया कि जन्म-स्थान के कारण कोई महान नहीं होता। महान होता है तो अपने कर्मों से।
आप संसार के कैदखाने में जन्म लेकर भी कैदी की तरह नहीं, एक जेलर की तरह जी सकते हैं। जो कारागार में होते हुए भी बंधन में नहीं है। मुक्त है।इसके बाद जब वासुदेव प्रभु को लेकर यमुना पार करने लगे, तो भयंकर तूफान और बारिश होने लगी। प्रभु ने एक विशालकाय सर्प द्वारा अपने पर छाया करवाई। सर्प काल का प्रतीक माना जाता है। उसका कार्य ही मृत्यु देना है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उसे अपना रक्षक बनाया। इस लीला द्वारा उन्होंने समाज के समक्ष एक बहुत विस्फोटक विचार रखा कि, यदि काल से भागना चाहोगे, तो नहीं भाग पाओगे।
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