आकाश ज्ञान वाटिका, 1 जून 2020, सोमवार। प्राचीन काल में ‘सगर’ नमक एक प्रतापी और शक्तिशाली राजा थे। राजा सगर के अश्वमेध घोड़े को एक बार देवताओं केराजा इंद्र ने पकड़ लिया और कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। उधर अश्वमेध घोड़े की तलाश में राजा सगर के 60 हजार पुत्र निकल पड़े। जब उन्होंने मुनि के आश्रम में घोड़े को बंधा देखा तो आश्रम पर ही धावा बोल दिया। इसी समय तप में लीन कपिल मुनि की आँखें खुल गईं और वह क्रोधित हो उठे। मुनि की आँखों में उठी ज्वाला ने सगर के 60 हजार पुत्रों को पलभर में राख कर दिया।
राजा सगर के एक और पुत्र अंशुमान को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने कपिल मुनि से अपने भाइयों की आत्मा के शान्ति एवं उद्धार की प्रार्थना की। तब कपिल मुनि ने उन्हें बताया कि अगर पवित्र गंगा का जल भस्म हुए सगर पुत्रों पर छिड़का जाए तो उन्हें मुक्ति मिल जाएगी। अंशुमान ने बहुत कोशिश की लेकिन वह अपने भाइयों को कपिल मुनि के कोप से मुक्त नहीं करा सके। तत्पश्चात उनके पोते राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए तपस्या करने का बीड़ा उठाया। अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति एवं उद्धार करने के लिए भगीरथ ने कठोर तपस्या की और आखिरकार माँ गंगा को धरती पर आने की उनकी प्रार्थना स्वीकार करनी पड़ी।
गंगा की तेज धारा को धरती पर कैसे लाया जायेगा, यह एक कठिन बिषय बन गया क्योंकि तीव्र वेग वाली माँ गंगा की धरा को सीधे धरती पर उतारने से भयंकर तबाही एवं प्रलय निश्चित था। तब भागीरथ ने पुनः भगवान भोले शंकर (शिव) की तपस्या की और उनसे माँ गंगा को धरती पर लेन हेतु मदद की की प्रार्थना की। भगवन शिव ने माँ गंगा को अपनी जटाओं से होकर धरती पर जाने के लिए कहा और इस तरह माँ गंगा का धरती पर अवतरण हुआ। अब भगीरथ आगे आगे जा रहे थे और माँ गंगा उनके पीछे चल रही थीं। राजा भगीरथ पतित पावनी माँ गंगा को गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गए। गंगासागर पहुँचकर उन्होंने कपिल मुनि से विनती की कि वह उनको अपने श्राप से मुक्त करने की कृपया करें। मोक्षदायिनी माँ गंगा की अमृतधारा भगीरथ की कठोर तपस्या का फल थी जिसे धरती पर देखकर महर्षि कपिल बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने सगर पुत्रों को अपने श्राप से मुक्त कर दिया।
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