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10 लक्षण महापर्व – उत्तम शौच धर्म – आज देव-भक्ति साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम की श्रंखला में लघु नाटिका ‘नियम का फल’ का आयोजन हुआ

आकाश ज्ञान वाटिका, 14 सितम्बर 2021, मंगलवार, देहरादून। 10 लक्षण महापर्व के शुभ अवसर पर आज निज प्रतिनिधि की पूजा अर्चना के साथ साथ सभी श्रद्धालु पूरे भक्ति भाव में तल्लीन होकर 108 मुनि श्री विबुद्ध सागर जी एवम 105 क्षुल्लक श्री समर्पण सागर जी महाराज के सानिध्य में देव भक्ति कर रहे हैं । इसी श्रंखला में आज जिनवाणी जागृति मंच द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम की श्रंखला में लघु नाटिका नियम का फल रात्रि में आयोजित किया गया। जिसका उद्देश्य यह था कि नियम का फल मिलता ही मिलता है। नियम ले तो उसका पूर्णतया पालन भी करें। इसी के साथ सभी महिलाओं ने भव्य सामूहिक आरती थाल सजाओ प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया।

पांचवे दिन उत्तम शौच धर्म का दिन है। आज शौच धर्म के बारे में मुनिराज कहते है कि उत्तम शौच धर्म अर्थ ही है अपरिग्रह के साथ मन को प्रसन्न बनाना अर्थात शुचिता का दिन है। यह लोभ के अभाव में आती है।लोभ एक ऐसी कषाय है जो बहुत दुःख देती है। हमारी इच्छायें बढ़ती रहती हैं और हम उन्हें पूरा करना का लोभ करते है, ये हमारी तृष्णा है। एक इच्छा कम्प्लीट होने के बाद नेक्स्ट की इच्छा होती है। यह क्रम निरन्तर बना रहता है। मरूस्थल की धूप में पानी को देखने के समान यह लोभ हमें लुभाता है, दौड़ाता है।

यह इच्छा, तृष्णा मन की एक ऐसी प्यास है जो बनी रहती है। संतोष ही सबसे बड़ा धन है, यह लोभ कषाय को कम करके आत्मा मे पवित्रता, शुचिता का भाव आता है। हम इच्छाओं की पूर्ति के चक्कर में अपने सारे सम्बन्धों, उपदेशों को ताक पर रख देते हैं। अंत में महाराज श्री कहते हैं कि इच्छायें तो अनंत हैं हर एक में दु:खी है तो अपना भला चाहो तो संतोष में सुख है।

[highlight]उत्तम शौंच[/highlight]

धरि हिरदै संतोष, करहु तपस्या देहसों; शौंच सदा निरदोष, धरम बड़ो संसार में।

उत्तम शौंच सर्व जग जाना, लोभ पाप को बाप बखाना; आशा पास महा दुख दानी, सुख पावैं संतोषी प्रानी।

प्रानी सदा शुचि शील जप, तप ज्ञान ध्यान प्रभा-वतैं; नित गंग जमुन समुद्र न्हाये, अशुचि दोष सुभा-वतैं।

ऊपर अमल मल भरयो भीतर, कौन विधि घट शुचि कहै; बहु देह मैली सुगुन थैली, शौंच गुन साधू लहै।

ॐ ह्रीं उत्तम शौंच धर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

[box type=”shadow” ]जैन धर्म के दिगम्बर अनुयायियों द्वारा आदर्श अवस्था में अपनाये जाने वाले गुणों को दशलक्षण धर्म कहा जाता है। इसके अनुसार जीवन में सुख-शांति के लिए उत्तम क्षर्मा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, अकिंचन और ब्रह्मचर्य आदि दशलक्षण धर्मों का पालन हर मनुष्य को करना चाहिए।

जैन ग्रन्थ, तत्त्वार्थ सूत्र में १० धर्मों का वर्णन है। यह १० धर्म है:

  • उत्तम क्षमा
  • उत्तम मार्दव
  • उत्तम आर्जव
  • उत्तम शौच
  • उत्तम सत्य
  • उत्तम संयम
  • उत्तम तप
  • उत्तम त्याग
  • उत्तम आकिंचन्य
  • उत्तम ब्रह्मचर्य

दसलक्षण पर्व पर इन दस धर्मों को धारण किया जाता है।[/box]

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Ghanshyam Chandra Joshi

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