केदारघाटी में आपदा का कारण बनी चौराबाड़ी झील से करीब ढाई किलोमीटर ऊपर एक और ग्लेशियर झील बनने की जानकारी मिली है।
जून 2013 में केदारघाटी में आपदा का कारण बनी चौराबाड़ी झील से करीब ढाई किलोमीटर ऊपर एक और ग्लेशियर झील बनने की जानकारी मिली है। यह झील ग्लेशियर के ऊपर बनी है।
देहरादून,जून 2013 में केदारघाटी में आपदा का कारण बनी चौराबाड़ी झील से करीब ढाई किलोमीटर ऊपर एक और ग्लेशियर झील बनने की जानकारी मिली है। यह झील ग्लेशियर के ऊपर बनी है। इस बात की जानकारी सिक्स सिग्मा स्टार हेल्थकेयर व एसडीआरएफ की टीम ने दी है।
यह टीम केदारनाथ क्षेत्र में स्वास्थ्य शिविर के लिए पहुंची थी और ट्रेकिंग के दौरान झील दिखी। टीम की ओर से लिए गए चित्रों का अवलोकन करने के बाद वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने अपने आगामी दौरे के तहत झील का भी निरीक्षण करने का निर्णय लिया है।
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के हिमनद विशेषज्ञ डॉ. डीपी डोभाल ने बताया कि जिस तरह से इस झील के ग्लेशियर के ऊपर बनने की जानकारी मिली है। इसे सुपर ग्लेशियर लेक (झील) कहा जा सकता है। ऐसी झील हमेशा ग्लेशियर के ऊपर ही बनती है।
उन्होंने बताया कि इस दफा बारिश अधिक होने से ग्लेशियर क्षेत्रों में जमकर बर्फ पड़ी है। यही कारण भी है कि यह झील अस्तित्व में आ गई। ग्लेशियर से निकलने वाले मलबे व एवलान्च से निकलने वाली बर्फ एकत्रित हो जाने से इस झील बनने की आशंका है।
मोटे अनुमान के अनुसार इसका दायरा 40 से 50 मीटर हो सकता है। हालांकि, अभी झील को लेकर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। इस तरह की सुपर ग्लेशियर लेक जल्द नष्ट भी हो जाती हैं। क्योंकि ग्लेशियर पर बनी इस तरह की झील बर्फ को भी तेजी से पिघलाती है और इससे पानी को रिसने का रास्ता मिल जाता है।
दूसरी बात यह कि ग्लेशियर में भी लगातार बदलाव होते रहते हैं और इस कारण भी झील बनती-बिगड़ती रहती हैं। दूसरी तरफ ग्लेशियर के नीचे या सामने झील तब बनती हैं, जब ग्लेशियर के मलबे में आए बड़े-बड़े बोल्डर जमा हो जाते हैं। यह झील जल्दी से टूटती नहीं हैं और इसमें पानी एकत्रित होता रहता है। इसी तरह की झील अधिक खतरनाक भी होती हैं।
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने बताया कि वह जल्द चौराबाड़ी व डुकरानी ग्लेशियर का दौरा करेंगी और फिर इस झील की प्रकृति का भी अध्ययन किया जाएगा।
आपदा का कारण बनी झील अब खाली
केदारनाथ मंदिर के करीब दो किलोमीटर ऊपर झील बनने और फिर उसके फट जाने से 2013 में केदारघाटी की आपदा ने विकराल रूप धारण कर लिया था। क्योंकि झील में जमा बड़े-बड़े बोल्डर भी पानी के साथ नीचे आ गए थे। हालांकि, तभी इस झील का मुहाना पूरी तरह खुल गया था और इसमें अब पानी जमा नहीं होता है।
खतरे जैसी कोई बात नहीं
एसडीआरएफ के आइजी संजय गुंज्याल के मुताबिक, हमारी टीम के सदस्यों से जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक झील तो बनी है, मगर उसमें पानी बहुत कम है। खतरे जैसी भी कोई बात अभी तक नजर नहीं आई। हमारे दल के सदस्य निश्चित अंतराल में चौराबाड़ी का दौरा करते रहते हैं। कुछ भी असामान्य नजर आने पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
इस तरह की झील बनना सामान्य घटना
आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन केंद्र उत्तराखंड के अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला ने बताया कि ग्लेशियरों में इस तरह की झीलों का बनना सामान्य घटना है। देखने वाली बात यह होगी कि झील कितने समय तक बनी रहती है और इसमें कितना पानी जमा होता है। इस पर निगरानी रखी जाएगी और कुछ भी संवेदनशील लगने पर विशेषज्ञों के माध्यम से कार्रवाई की जाएगी। रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन से भी अपडेट लिया जा रहा है और फिलहाल झील को छेड़ा नहीं जा रहा है।
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