मुख्यमंत्री ने अधिष्ठात्री मायादेवी मन्दिर परिसर में पूजा-अर्चना के पश्चात पवित्र छड़ी यात्रा को किया रवाना
आकाश ज्ञान वाटिका, गुरुवार, 17 सितम्बर 2020, देहरादून (सू.ब्यूरो)। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने गुरूवार को हरिद्वार में श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े की राज्य के चारधाम व अन्य तीर्थों की यात्रा पर जाने वाली पवित्र छड़ी यात्रा को तीर्थ नगरी हरिद्वार की अधिष्ठात्री मायादेवी मन्दिर परिसर से अधिष्ठात्री मायादेवी, छड़ी एवं भैरव देवता की पूजा अर्चना, आरती एवं परिक्रमा करने के पश्चात रवाना किया। पवित्र छड़ी यात्रा पूरे प्रदेश का भ्रमण करने के पश्चात 12 अक्टूबर को वापस हरिद्वार पहुँचेगी।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि इस छड़ी यात्रा के शुभारम्भ से उत्तराखण्ड में धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने इस यात्रा को आस्था एवं विश्वास से जुड़ा विषय बताते हुए कहा कि इससे समाज में सौहार्दता भी बढ़ेगी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि आम जनमानस इस छड़ी यात्रा के अवसर पर पवित्र छड़ी का पूजन कर पूण्य के भागी बनेंगे। उन्होंने कोविड-19 के दृष्टिगत छड़ी यात्रा के संचालन के दौरान आवश्यक एहतियात बरतने की भी अपेक्षा आयोजको से की।
जूना अखाड़ा के संरक्षक श्री महंत स्वामी हरिगिरि ने बताया कि यह पवित्र यात्रा 17 सितम्बर की रात्रि को ऋषिकेश में विश्राम के बाद 18 सितम्बर को ऋषिकेश से देहरादून, मसूरी, लाखामण्डल होते हुये बड़कोट पहुँचेगी। 19 सितम्बर को बड़कोट से जानकी चट्टी होते हुये यमुनोत्री पहुँचेगी तथा उत्तरकाशी में रात्रि विश्राम के बाद 20 सितम्बर को उत्तरकाशी से गंगोत्री धाम पहुँच जायेगी। पवित्र छड़ी यात्रा में जूना अखाड़ा के राष्ट्रीय सभापति श्री महंत प्रेम गिरि, महंत शिखर गिरि, महंत रणवीर गिरि, सचिव श्री महंत महेश पुरी आदि शामिल रहेंगे। जूना अखाड़ा के संरक्षक श्री महंत स्वामी हरिगिरि ने कहा कि छड़ी यात्रा प्रारम्भ करके मुख्यमंत्री ने एक बड़ी परम्परा का शुभारम्भ किया है। इससे पूर्व अधिष्ठात्री मायादेवी मन्दिर परिसर पहुँचने पर मुख्यमंत्री का भव्य स्वागत किया गया।
इस अवसर पर शहरी विकास, आवास मंत्री श्री मदन कौशिक, मेला अधिकारी श्री दीपक रावत, जिलाधिकारी श्री सी. रविशंकर, आई.जी. श्री संजय गुंजयाल, श्री महंत केदार पुरी, सभापति श्री महंत सोहन गिरि, श्री महंत पृथ्वी गिरि, श्री महंत शिवानन्द सरस्वती, सचिव श्री महंत महेश पुरी, शैलेन्द्र गिरि आदि उपस्थित थे।
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