घंटियों को हिन्दू धर्म की आस्था का प्रतीक माना जाता है – उम्मीद है कि नवरात्रि पर घंटिया का कारोबार अच्छी रफ्तार पकड़ेगा
- चितई गोलू मन्दिर, घोड़ाखाल मन्दिर, नैना देवी, लक्ष्मी माता मंदिर, गर्जिया देवी, मां पूर्णागिरि धाम, कालीचैड माता और शीतला माता मंदिर में घंटी चढ़ाने लोग दूर- दूर से आते हैं।
- घंटियों को हिन्दू धर्म की आस्था का प्रतीक माना जाता है, इसलिए लोग घंटी को घर से लेकर मन्दिर तक रखते हैं।
- घंटी बजने की आवाज से नकारात्मक शक्तियां समाप्त होती हैं और और सुख – समृद्धि आती है।
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आकाश ज्ञान वाटिका, 16 अक्टूबर 2020, शुक्रवार, देहरादून। उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है। यहां कण-कण में देवी देवताओं का वास माना जाता है। ऐसे में उत्तराखंड में जगह-जगह आपको छोटे बड़े मंदिर देवालय का दर्शन कर सकते हैं। यहां के मंदिरों में यहां के लोगों के साथ-साथ देश-विदेश के लोगों की भी काफी आस्था है। इसी तरह कुमाऊंनी संस्कृति में भी देवी देवताओं को घंटी चढ़ाने का रिवाज सदियों पुराना है। जिसे लोग आज भी निभाते आ रहे हैं।
देवभूमि उत्तराखंड में चंद राजाओं के दौर से ही मंदिरों और देवताओं के स्थानों पर घंटी चढ़ाई जाने का परंपरा है। कुमाऊं में प्रसिद्ध चितई गोलू मन्दिर, घोड़ाखाल मन्दिर, नैना देवी, लक्ष्मी माता मंदिर, गर्जिया देवी, मां पूर्णागिरि धाम, कालीचैड माता और शीतला माता मंदिर में घंटी चढ़ाने लोग दूर- दूर से आते हैं। मान्यता के मुताबिक लोग कोई भी नया काम करने वैवाहिक जीवन की शुरूआत करने नौकरी से सेवानिवृत्त होने, या अन्य मनोकामना पूर्ण होने के लिए घंटी चढ़ाते हैं। घंटियों का कारोबार पूरे सालभर चलता है, लेकिन गर्मी और सर्दियों की छुट्टियों के दौरान इनकी डिमांड और भी बढ़ जाती है। क्योंकि छुट्टियों के चलते उत्तराखंड में पर्यटक भी भारी मात्रा में आते हैं। साथ ही यहां की प्रवासी भी छुट्टियों में परिवार के साथ घर वापसी करते हैं, जो मंदिरों में जाकर अपनी मनोकामना के लिए प्रार्थना करते हैं। अकेले हल्द्वानी और अल्मोड़ा के बाजार से घंटिया का प्रति वर्ष करीब 1 से 2 करोड़ का कारोबार होता है। जबकि पूरे कुमाऊं से 6 से 8 करोड़ का कारोबार होता है, जिससे यह भी साबित हो रहा है की मन्दिरों में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है।
घंटी का कारोबार करने वाले राजीव अग्रवाल के मुताबिक उनके पास 100 रुपये की कीमत से लेकर लाखों रुपये की कीमत तक की घंटिया उपलब्ध रहती हैं। नवरात्रि की वजह से उम्मीद की जा रही है कि कोरोना काल के बाद घंटिया का कारोबार अच्छी रफ्तार पकड़ेगा।
घंटियों को हिन्दू धर्म की आस्था का प्रतीक माना जाता है, इसलिए लोग घंटी को घर से लेकर मन्दिर तक रखते हैं। घंटियां बनाने वालों के मुताबिक जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होती है, जो वायुमंडल में दूर तक फैलती है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।
जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है, वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। घंटी बजने की आवाज से नकारात्मक शक्तियां समाप्त होती हैं और और और सुख – समृद्धि आती है।
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