ऋतुराज बसंत के स्वागत के रूप में मनाया जाना वाला, हमारे देश का एक महत्त्वपूर्ण त्यौहार है, बसंत पंचमी।
ऋतुराज बसंत के स्वागत के रूप में मनाया जाना वाला, हमारे देश का एक महत्त्वपूर्ण त्यौहार है, बसंत पंचमी
विद्यारंभ करने का शुभ दिन है वसंत पंचमी या बसंत पंचमी
अनेकता में एकता का प्रतीक भारतवर्ष में मौसम का मिजाज भी वर्षभर बदलता रहता है। मौसम व प्राकृतिक छटा पूरे वर्षभर अलग-अलग अंदाज में सौन्दर्य बिखेरकर हमारे जीवन में भी सुनहरा प्रभाव डालती है। इसी आधार पर हमारे देश में क्रमशः छः ऋतुएँ अपने अलग-अलग सुनहरे अंदाज में आकर हमारी जीवन शैली को अपने अनुसार परिवर्तित करने को प्रेरित करते हैं। इन छः ऋतुओं में बसंत ऋतु का अपना एक अनोखा ही रंग है। इसे ऋतुराज बसंत कहा जाता है जिसका अति विशिष्ट महत्व है। बसंत में प्रकृति अपने सौन्दर्य व यौवन के चरम पर होकर मानव मन का मोहित कर लेती है। हर तरफ रंग-बिरंगें, भांति-भांति के पुष्पों से प्रकृति का सौन्दर्य कुछ अनोखा ही प्रतीत होता है। इन बहुरंगे, विभिन्न पुष्पों के सौन्दर्य से तितलियाँ और मधुमक्खियाँ व पक्षी आदि इनकी तरफ आकर्षित होकर मधु का रसपान करते हैं। प्रकृति के इस मनोहारी छटा को देख आखिर मानव कहाँ अपने आप को रोक पाता, लिहाजा इस अनुपम सुन्दरता का लुफ्त उठाने के लिए वह झूम-झूम कर इसे दिल से निहारता रहता है व खुशी से से झूम उठता है। अतः यह कहना सदैव सत्य होगा कि बसंत के आते ही पेड़—पौंधे, पशु—पक्षी, बच्चे-जवान—बृद्ध सब अपने-अपने अंताज में मंत्र-मुग्ध होकर प्रकृति के इस सौन्दर्य का भरपूर लुफ्त उठाते हैं। ऋतुराज बसंत की छटा निहारकर जड़-चेतन सभी में नव-जीवन का संचार होता है सभी में अपूर्व उत्साह और आनंद की तरंगे दौड़ने लगती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ऋतु बड़ी ही उपयुक्त है। इस ऋतु में प्रातःकाल भ्रमण करने से मन में प्रसन्नता और देह में स्फूर्ति आती है। स्वस्थ और स्फूर्तिदायक मन में अच्छे विचार आते हैं। यही कारण है कि इस ऋतु पर सभी कवियों ने अपनी लेखनी चलाई है।
ऋतुराज बसंत के स्वागत के रूप में मनाया जाना वाला, हमारे देश का एक महत्त्वपूर्ण त्यौहार है, बसंत पंचमी। बसंत पंचमी का त्योहार हमारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। बसंत पंचमी के दिन ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती देवी का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। विद्यारंभ करने का शुभ दिन है वसंत पंचमी या बसंत पंचमी।
बसंत पंचमी पर हमारी फसलें गेहूँ, चना, जौ आदि तैयार हो जाती हैं इसलिए इसकी खुशी में हम बसंत पंचमी का त्योहार मनाते हैं। इस पर्व पर लोग बसंती कपड़े पहनते हैं और बसंती रंग का भोजन करते हैं तथा एक दूसरे को मिठाइयाँ बाँटते हैं तथा लोग रंग-बिरंगी पतंगें उड़ाते हैं। इस पर्व पर विद्यालयों में सरस्वती पूजा होती है और शिक्षक विद्यार्थियों को विद्या का महत्व बताते हुए उन्हें खुशी के साथ पढ़ने की प्रेरणा देकर उनके उज्जल भविष्य की कामना करते हैं।
कुमाऊं मंडल के पर्वतीय अंचलों में ऋतुराज बसंत के आगमन का पर्व, बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल कक्ष की पंचमी की तिथि को परंपरागत तौर पर श्री पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इसे यहां सिर पंचमी या जौं पंचमी कहने की भी परंपरा है। बसंत ऋतु के आगमन पर नये पीले वस्त्र धारण करने की परंपरा है। कोई पीला वस्त्र न हो तो पीले रंग के रुमाल जरूर रखे जाते हैं। साथ ही घरों व मंदिरों में खास तौर पर विद्या की देवी माता सरस्वती की विशेष पूजन-अर्चना की जाती है। इस दिन लोग खेतों से विधि-विधान के साथ जौ के पौधों को उखाड़कर घर में लाते हैं, और मिट्टी एवं गाय के गोबर का गारा बनाकर इससे जौं के तिनकों को अपने घरों की चौखटों पर चिपकाते हैं, साथ ही परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर जौ के तिनकों को हरेले की तरह चढ़ाते हुये आशीश दी जाती हैं। घरों में अनेक तरह के परंपरागत पकवान भी बनते हैं। इस दिन छोटे बच्चों को विद्यारंभ एवं बड़े बच्चों का यज्ञोपवीत संस्कार भी कराया जाता है, तथा उनके कान एवं नाक भी छिंदवाते हैं। बसंत पंचमी के इस पर्व को गांवों में बहन-बेटी के पावन रिश्ते के पर्व के रूप में मनाने की भी परंपरा है। इस पर्व को मनाने के लिए बेटियां ससुराल से अपने मायके आती हैं, अथवा मायके से पिता अथवा भाई उन्हें स्वयं पकवान व आशीश देने बेटी के घर जाकर उसकी दीर्घायु की कामना करते हैं।
हिंदु पौराणिक कथाओं में बसंत पंचमी कां मननने के बारे में जो कथा प्रचलित है वह इस प्रकार हैः हिंदु पौराणिक कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने संसार की रचना की। उन्होंने पेड़-पौधे, जीव-जन्तु और मनुष्य बनाए लेकिन उन्हें लगा कि उनकी रचना में कुछ कमी रह गई। इसीलिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई। उस स्त्री के एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। ब्रह्मा जी ने इस सुंदर देवी से वीणा बजाने को कहा। जैसे वीणा बजी ब्रह्मा जी की बनाई हर चीज में स्वर आ गया। तभी ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया। वह दिन बसंत पंचमी का था। इसी वजह से हर साल बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्मदिन मनाया जाने लगा और उनकी पूजा की जाने लगी।
सरस्वती पूजा के लिए सुबह-सुबह नहाकर मां सरस्वती को पीले फूल अर्पित करें। इसके बाद पूजा के समय मां सरस्वती की वंदना करें। पूजा स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबें रखें और बच्चों को भी पूजा स्थल पर बैठाएं। बच्चों को तोहफे में पुस्तक दें। इस दिन पीले चावल या पीले रंग का भोजन करें।
माघ शुक्ल पंचमी को ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप मे वसंत पंचमी के रुप में मनाया जाता है। इस मौके पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है और मौसम में आसानी से उपलब्ध होने वाले फूल चढ़ाए जाते हैं। विद्यार्थी इस दिन किताब-कॉपी और पाठ्य सामग्री की भी पूजा करते हैं। जिस दिन पंचमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच रहती है, उस दिन को सरस्वती पूजा के लिये उपयुक्त माना जाता है। इस दिन कई स्थानों पर शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। इसका कारण यह है कि इस दिन को विद्या आरंभ करने के लिये शुभ माना जाता है।
ज्योतिष के मुताबिक वसंत पंचमी का दिन अबूझ मुहूर्त के तौर पर भी जाना जाता है, इस कारण नए कार्यों को शुरूआत के लिए यह दिन उत्तम माना जाता है। इस दिन मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा, घर की नींव, गृह प्रवेश, वाहन खरीदने, व्यापार शुरू करने आदि के लिए शुभ है। इस दिन अन्नप्राशन भी किया जा सकता है।
सरस्वती पूजा के मौके पर मां सरस्वती की स्तुति की जाती है। इस दौरान सरस्वती स्तोत्रम का पाठ किया जाता है। कई शिक्षण संस्थानों में भी इस स्तोत्र के जरिए मां सरस्वती की वंदना की जाती है। घर में भी इस स्तोत्र के जरिए मां सरस्वती की वंदना कर सकते हैं।
या कुन्देन्दु-तुषारहार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥
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