उत्तराखण्डसम्पादकीयसुर्खियाँ
गाँवों के विकास से ही संभव है, उत्तराखण्ड को आदर्श राज्य बनाने का सपना….
गाँवों के विकास से ही संभव है, उत्तराखण्ड को आदर्श राज्य बनाने का सपना….
भारतवर्ष का दिल, गाँव आज शहरों की तुलना में उपेक्षित हो रहे हैं। भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर उत्तराखण्ड को उत्तर प्रदेश से अलग किया गया, जिसके पीछे संघर्ष की एक बहुत लम्बी कहानी है। सोचा था अलग राज्य बनने के बाद विकास की गंगा हमारे गाँवों की ओर तीव्र गति से बहेगी जिससे पलायन जैसी समस्यायें स्वतः ही समाप्त हो जायंेगी। लेकिन उत्तराखण्ड राज्य बनने के 12 साल बाद भी गाँवों से लोगों का पलायन होना पूर्णतः रूका नहीं है। विकास जरूर हो रहा है लेकिन इसका केन्द्र बिन्दु एक दूर-दराज का गाँव न होकर, शहर है। अनियोजित विकास के कारण हमारी अनुपम संस्कृति खतरे में पड़ती नजर आ रही है। विकास ऐसा होना चाहिए, जिससे आम आदमी को मूलभूत सुविधाऐं पर्याप्त मात्रा में मिल सके तथा हमारी संस्कृति व कलाओं का हृास भी न हो। विकास के नाम पर जंगल कट रहे हैं, खेतीहर भूमि में बहुमंजली इमारतें खड़ी हो रही हैं। मानव जीवन की चार मूलभूत आवश्यकताओं, रोटी, कपड़ा, मकान और स्वस्थ वातावरण पर खतरा मंडराता नजर आ रहा है। बाहरी चकाचैंध व एशो-आराम ने मानव शरीर को अन्दर ही अन्दर खोखला कर दिया है। स्वस्थ वातावरण आज प्रदूषण की भेंट चढ़ता जा रहा है। गाँव का वातावरण आज भी खुशहाल व मर्यादाओं से परिपूर्ण है लेकिन सुविधाओं व विकास की कमी के चलते लोग गाँवों को छोड़कर शहरों में अपने जीवन-यापन के माध्यमें को तलाशने लगे हैं। गाँवों के प्रदूषण रहित वातावरण व सुसंस्कृति के माहौल को मजबूरन छोड़कर लोगों को शहरों की ओर पलायन करना पड़ रहा है। सुख-सुविधाओं के असीमित साधनों के पश्चात भी आज जीवन अधिकतर नीरस व तनावग्रस्त बनता जा रहा है। इसका कारण है कि हम अपने संस्कार, रीति-रिवाजों से दूर होते जा रहे हैं। आज हर तरफ अराजकता का माहौल व्याप्त है। संगठित समाज तो दूर संयुक्त परिवार भी बहुत कम नजर आ रहे हैं। व्यस्थता व समयाभाव के कारण हम अपने रीति-रिवाजों से मुँह मोड़ते जा रहे हैं।आज मानव ने प्रकृति को भी सुरक्षित नहीं छोड़ा है। प्रकृति के साथ जो छेड़-छाड़ की जा रही है उसी के फलस्वरूप प्रकृति का रौद्र रूप देखने को मिल रहा है। जंगलों के कटने के कारण पहाड़ में भूस्खलन तथा शहरों में बाढ़ की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।
यद्यपि विकास आज एक आवश्यकता बन चुकी है। लेकिन विकास ऐसा होना चाहिए, जिससे हमारी संस्कृति, कलाओं तथा प्रकृति के वास्तविक स्वरूप पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ने पाये । उत्तराखण्ड को आदर्श राज्य बनाने का सपना तभी पूरा हो सकता है जब प्रत्येक गाँव का विकास होगा, गाँव में ही रोजगार के पर्याप्त साधन उपलब्ध हो सकेंगे। गाँवों के लोगों को शिक्षा, जल, विद्युत, चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाऐं पूर्णतया प्राप्त हो सकेंगी। इसके लिए हमें स्वार्थ की भावनाओं को त्यागना होगा तथा अपने हित के साथ ‘परहित सरिस धर्म नहि भाई’, की भावना के साथ काम करना होगा। गाँवों के विकास के लिए हम सभी का कर्तव्य बनता है कि सरकार का सहयोग करें । गाँव के आम आदमी को जागरूक होकर सरकार के सम्मुख अपनी समस्याओं को रखना होगा । पहाड़ की शान्त वादियों, स्वस्थ वातावरण व सांस्कृतिक कलाओं के प्रति प्रत्येक व्यक्ति का स्नेह बढ़ना आज आम आवश्यकता बन चुकी है। एकजुट होकर विकास कार्यों में सरकार व जनप्रतिनिधियों का साथ दें, मंजिल अवश्य हाॅसिल होगी । हमारी एकता, अखंडता, पश्रिम व त्याग से देवभूमि, उत्तराखण्ड अवश्य ही एक आदर्श राज्य बनेगा।
जय हिन्द, जय उत्तराखण्ड।
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