उत्तराखण्ड का लोक पर्व, हरियाली का प्रतीक ‘हरेला’
हरियाली का प्रतीक ‘हरेला’ उत्तराखंड का एक महत्वपूर्ण व प्रसिद्ध लोकपर्व है
हरेला पर्व के उपलक्ष में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री माननीय त्रिवेंद्र सिंह रावत ने वृक्षारोपण कर समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभ कामनायें प्रेषित की।
“जी रया जागि रया आकाश जस उच्च,
धरती जस चाकव है जया स्यावै क जस बुद्धि,
सूरज जस तराण है जौ सिल पिसी भात खाया,
जाँठि टेकि भैर जया, दूब जस फैलि जया…”
देवभूमि उत्तराखंड की धरती पर ऋतुओं के अनुसार अनेकों त्यौहार मनाये जाते हैं । यह लोक पर्व हमारी संस्कृति को उजागर करने के साथ ही पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखने में सहायक होते हैं । इन्हीं खास पर्वो में शामिल “हरेला” उत्तराखंड का एक महत्वपूर्ण व प्रसिद्ध लोकपर्व है | उत्तराखंड में इस त्योहार की काफी मान्यता है |
हरियाली का प्रतीक ‘हरेला’ हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्यौहार है जो मूल रूप से उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में मनाया जाता है । हरेला पर्व हमें पर्यावरण संरक्षण एवं वृक्षारोपण की प्रेरणा देता है। उत्तराखण्ड में हरेला के त्यौहार को वृक्षारोपण त्यौहार के रुप में भी मनाया जाता है। श्रावण मास के हरेला त्यौहार के दिन घर में हरेला पूजे जाने के उपरान्त एक-एक पेड़ या पौधा अनिवार्य रुप से लगाये जाने की भी परम्परा है। माना जाता है कि श्रावण मास के ‘हरेला’ के दिन किसी भी पेड़ की टहनी को मिट्टी में गाड़ दिया जाय तो पांच-छः दिनों के बाद उसमें जड़े निकल आती हैं और यह पेड़ हमेशा जीवित रहता है।
हरेले का पर्व हमें नई ऋतु के शुरु होने की सूचना देता है। उत्तराखण्ड में मुख्यतः शीत, ग्रीष्म और वर्षा तीन ऋतुयें होती हैं । यह त्यौहार हिन्दी, सौर पंचांग की तिथियों के अनुसार मनाया जाता है। शीत ऋतु की शुरुआत आश्विन मास से होती है, अतः आश्विन मास की दशमी को हरेला मनाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत चैत्र मास से होती है, अतः चैत्र मास की नवमी को हरेला मनाया जाता है। इसी प्रकार से वर्षा ऋतु की शुरुआत श्रावण माह से होती है, अतः एक गते, श्रावण को हरेला मनाया जाता है। हरेला पर्व वैसे तो वर्ष में तीन बार आता है- पहला चैत्र मास में : प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है; दूसरा श्रावण मास में : सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है; तीसरा आश्विन मास में : आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है।
लेकिन उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले ‘हरेला’ को ही अधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि श्रावण मास शंकर भगवान जी का विशेष प्रिय माह है।उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है। इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्व है।
हरेला त्यौहार से नौ दिन पहले घर के भीतर स्थित मन्दिर में या ग्राम के मन्दिर के भीतर सात प्रकार के अन्न (जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट) को रिंगाल की टोकरी में बोया जाता है। बोते समय पहले रिंगाल की टोकरी में एक परत मिट्टी की बिछाई जाती है, फिर इसमें बीज डाले जाते हैं। तत्पश्चात फिर से मिट्टी डाली जाती है, फिर से बीज डाले जाते हैं, यही प्रक्रिया पाँच या छः बार अपनाई जाती है। इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है। ९ वें दिन इनकी पाती (एक स्थानीय वृक्ष) की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें यानि कि हरेले के दिन इसे काटा जाता है। काटने के बाद गृह स्वामी द्वारा इसे तिलक-चन्दन-अक्षत एवं “रोग, शोक निवारणार्थ, प्राण रक्षक वनस्पते, इदा गच्छ नमस्तेस्तु हर देव नमोस्तुते” मन्त्र द्वारा अभिमंत्रित किया जाता है, जिसे हरेला पतीसना कहा जाता है। उसके बाद इसे देवता को अर्पित किया जाता है, तत्पश्चात घर की बुजुर्ग महिला सभी सदस्यों को हरेला पूजती हैं। हरेला पूजने का अर्थ है कि हरेला सबसे पहले पैरो, फिर घुटने, फिर कन्धे और अन्त में सिर में रखा जाता है और आशीर्वाद स्वरुप यह पंक्तियां कहीं जाती हैं:
“जी रया जागि रया आकाश जस उच्च,
धरती जस चाकव है जया स्यावै क जस बुद्धि,
सूरज जस तराण है जौ सिल पिसी भात खाया,
जाँठि टेकि भैर जया, दूब जस फैलि जया…”
अर्थात ‘जीते रहिये, जागते (जागृत) रहिये। आकाश जैसी ऊँचाई, धरती जैसा विस्तार, सियार की सी बुद्धि, सूर्य जैसी शक्ति प्राप्त करो। आयु इतनी लम्बी हो कि चावल भी सिल में पीस के खायें और बाहर जाने को लाठी का सहारा लो, दूब की तरह फैलते रहो ।”
हरेला घर-घर में बोया जाता है, लेकिन किसी-किसी गाँव में हरेला पर्व को सामूहिक रुप से ग्राम देवता के मंदिर में भी मनाये जाने का प्रावधान है और पुजारी द्वारा सभी को आशीर्वाद स्वरुप हरेले के तिनके प्रदान किय जाते हैं।
आप सभी स्नेही बुद्धिजीवी जनों को हरेला पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
घनश्याम चंद्र जोशी, सम्पादक
आकाश ज्ञान वाटिका न्यूज़ पोर्टल,
ए-१९२, नेहरू कॉलोनी, देहरादून
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