सरकार द्वारा पत्रकार की जा रही उपेक्षा के खिलाफ़ विभिन्न पत्रकार संगठनों से जुड़े पत्रकारों तथा सम्पादकों की एक संयुक्त बैठक
- सरकार क्षेत्रीय छोटे एवं मंझौले समाचार पत्रों को खत्म करने की नीति के चलते विज्ञापनों से वंचित कर रही है।
- सरकार स्थानीय पत्रों एवं पत्रकारों की घोर उपेक्षा कर रही है।
- डीएवीपी पैटर्न पर उत्तराखंड में भी सोफ्टवेयर तैयार किया जाए।
- सूचना निदेशालय व सरकार डिवाइड एंड रूल के तहत पत्रकारों का दोहन करती आ रही है।
- विज्ञापन नियमावली की खामियों के विरुद्ध संघर्ष करने की जरूरत है।
- चुनिंदा तीन-चार अखबारों को ही करोड़ो रूपये के विज्ञापन दिए जा रहे है।
- पत्रकारों को अपने अस्तित्व लड़ाई लड़ने को तैयार रहना होगा।
आकाश ज्ञान वाटिका, देहरादून। बृहस्पतिवार, १७ अक्टूबर,२०१९। प्रदेश से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्रों की निरंतर हो रही उपेक्षा के खिलाफ़ विभिन्न पत्रकार संगठनों से जुड़े पत्रकारों तथा सम्पादकों की एक संयुक्त बैठक उज्जवल रेस्टोरेन्ट में हुई जिसमें एक स्वर से सरकार की उपेक्षापूर्ण रवैया तथा सूचना विभाग की भेदभावपूर्ण कार्य प्रणाली का विरोध किया गया। बैठक में कहा गया कि सरकार क्षेत्रीय छोटे एवं मंझौले समाचारपत्रों को खत्म करने की नीति के चलते विज्ञापनों से वंचित कर रही है जबकि बेतहाशा बजट में इन्हीं समाचारपत्रों का उल्लेख कर करोड़ों का बजट निर्धारित किया जाता है। इस बजट पर सूचना विभाग के अधिकारी मौज-मस्ती कर रहे हैं। बैठक में बोलते हुए गढ़वाल पोस्ट के सम्पादक सतीश शर्मा ने कहा की आज समाचारपत्रों की स्थिति ठीक नहीं है संयुक्त रूप से संघर्ष कर अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा तभी जाकर समाचार पत्र और पत्रकार ज़िंदा रहेंगे। मनमोहन लखेडा ने कहा कि चुनिंदा तीन-चार अखबारों को ही करोड़ो रूपये के विज्ञापन दिए जा रहे है। सरकार की इस भेदभावपूर्ण नीति के चलते छोटे एवं मँझोले समाचारपत्रों को समाप्त करने की साजिश रची जा रही है जिसके ख़िलाफ़ लंबे संघर्ष का बिगुल फूंकने का समय अब आ गया है।
शिवप्रसाद सती ने कहा कि सरकार स्थानीय पत्रों एवं पत्रकारों की घोर उपेक्षा कर रही है। एक मंच से इसके खिलाफ लामबंद होकर लड़ाई लड़ी जाएगी तो जीत अवश्य होगी। वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया के प्रदेश महासचिव सुनील गुप्ता ने कहा विज्ञापन मांगना नहीं बल्कि हमारा अधिकार है और अपने अधिकारों को छीना जाना चाहिए। हम सरकार से भीख नहीं मांगना चाहते हैं। संजय किमोठी ने पत्रकार कल्याण कोष और पत्रों के सूचीबद्धता का मामला उठाया। प्रधान टाइम्स के संपादक सुभाष शर्मा ने कहा कि पत्रकारों को एकजुट होने की जरूरत है। नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट के प्रदेश अध्यक्ष त्रिलोक चन्द्र भट्ट ने कहा कि डीएवीपी पैटर्न पर उत्तराखंड में भी सोफ्टवेयर तैयार किया जाए। इसके अतिरिक्त पत्रकारों के लिए यू हैल्थकार्ड, सूचीबद्धता प्रकरण का निपटारा व पत्रकार कल्याण कोष की बैठक शीघ्र बुलाकर पत्रकारों के लंबित प्रकरण को निपटाया जाए। उत्तराखंड पत्रकार महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष निशीथ सकलानी ने कहा कि पत्रकारों को व्यक्तिगत आर.टी.आई न लगाकर सरकार के कारनामों पर आर.टी.आई लगाकर उजागर करें। देवभूमि पत्रकार यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष विजय जायसवाल ने कहा कि सूचना विभाग के आला अफसर पत्रकारों का शोषण कर रहें हैं। जर्नलिस्ट यूनियन ऑफ उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष अरुण प्रताप सिंह ने कहा कि सरकार ने उत्तराखंड प्रिंट मीडिया विज्ञापन संशोधन नियमावली में बिना मीडिया संगठनों व पत्रकारों के राय मशविरे के संशोधन कर दिया है जो पत्रकार संगठनों व प्रेस कॉउंसलिंग ऑफ इंडिया के नियमों के विरूद्ध है। ऑल इंडिया एडिटर कॉन्फ्रेंस के प्रांतीय अध्यक्ष अहमद भारती ने कहा कि जब तक हम लोग संगठित नहीं होंगे तब तक सूचना निदेशालय व सरकार डिवाइड एंड रूल के तहत पत्रकारों का दोहन करती रहेगी। राष्ट्रीय पत्रकार यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष विकास गर्ग ने कहा कि विज्ञापन नियमावली की खामियों के विरुद्ध संघर्ष करने की जरूरत है। उत्तराखंड वेब मीडिया एसोसिएशन के अध्यक्ष शिवप्रसाद सेमवाल ने कहा कि पत्रकारों को अपने अस्तित्व लड़ाई लड़ने को तैयार रहना होगा। एनयूजे के प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष गुलशन नैय्यर ने कहा कि अब समय आ गया है पत्रकारों को अपने शोषण के खिलाफ एकत्रित होकर संघर्ष करना होगा। ऑल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष दिनेश शक्ति त्रिखा ने पत्रकारों से सरकारी विज्ञप्तियाँ न छापने का आह्वान किया। समाचारपत्र संघर्ष समिति के संयोजक बालकिशन शास्त्री ने कहा कि संपादकों की एकता जरूरी है ताकि वे अपने हक़ की लड़ाई लड़ सकें। इसके अतिरिक्त पत्रकार संजीव पंत (वेब मीडिया एसोसिएशन), रवीन्द्रनाथ कौशिक (एनयूजेआई प्रदेश महामंत्री), नरेश मनोचा (प्रदेश उपाध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार यूनियन), नरेश रोहिला (उत्तराखण्ड पत्रकार महासंघ), एम.एस. चौहान (अध्यक्ष उत्तराखण्ड जनकल्याण पत्रकार परिषद), अविक्षित रमन (प्रदेश कोषाध्यक्ष उत्तराखण्ड श्रमजीवी पत्रकार यूनियन), ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए पत्रकारों से एकजुट होकर सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ संघर्ष किये जाने का आह्वान किया। बैठक की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार आई.पी.उनियाल ने की तथा संचालन डॉ. वी.डी. शर्मा ने किया। बैठक में सर्वसम्मति आगामी रणनीति तय करने के लिए संयोजक मनमोहन लखेड़ा एवं डॉ. वी.डी. शर्मा को मनोनीत किया गया। इन्हें ज़िम्मेदारी सौंपी गई है कि वे सभी पत्रकार संगठनों की अध्यक्ष व महामंत्री की संयुक्त बैठक आयोजित कर पत्रकारों की समस्याओं से संबंधित एक ज्ञापन तैयार कर मुख्यमंत्री व सूचना विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को सौपेंगे। बैठक में प्रदेश के करीब चौदह पत्रकार संगठनों के प्रतिनिधि सर्वश्री अरूण कुमार मोंगा, उमाशंकर, प्रवीण मेहता, संजय पाठक, चेतन खड़का, गिरीश पंत, वीरेन्द्र दत्त गैरोला, अधीर मुखर्जी, केशव पचौरी, रविन्द्र कपिल, दीपक गुसांई, आलोक शर्मा, रवि अरोड़ा, मंजू शर्मा, सुभाष कुमार, दीपक गुलानी, सूर्यकान्त बेलवाल, नवीन पाण्डेय, सूर्य सिंह राणा, अमित सिंह नेगी, संदीप शर्मा, सी आर भट्ट, एस-एन-उपाध्याय, बालेश गुप्ता, सूर्यप्रकाश शर्मा, विजय शर्मा, विजय भट्ट, ललित उनियाल, जयसिंह रावत, दीगम्बर उपाध्याय, बीना उपाध्याय, अशोक खन्ना, हेमेन्द्र, सुशील चमोली, रंजीत सिंह रावत, अनिल शाह, चौ. विरेन्द्र सिंह, तिलकराज, मौ- खालिद, प्रेमलता भरतरी आदि उपस्थित थे।
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