प्राचीन शिवमंदिर धर्मपुर की ओर से आठवीं गणेश महोत्सव का शुभारम्भ
नेहरू कालोनी वासियों द्वारा शोभा यात्रा का किया गया भव्य स्वागत
आकाश ज्ञान वाटिका, देहरादून। आज २ सितम्बर २०१९ को सुबह ११ बजे, प्राचीन शिवमंदिर धर्मपुर की ओर से आठवें गणेश महोत्सव का शुभारम्भ किया गया। गणेश महोत्सव में भगवान गणेश की शोभा यात्रा निकाली गई, जो प्राचीन शिवमंदिर धर्मपुर से प्रारम्भ होकर क्षेत्र के विभिन्न मार्गों से होते हुए वापस शिव मंदिर पहुँची। शोभा यात्रा का क्षेत्रवासियों द्वारा जगह जगह पर भव्य स्वागत किया गया। नेहरू कालोनी वासियों द्वारा भी शोभा यात्रा का नवानी स्कूल के पास भव्य स्वागत किया गया। शोभायात्रा का स्वागत करने हेतु क्षेत्रीय पार्षद अमित भण्डारी, फतेह सिंह नेगी, सुलेमान अली, समीर मलिक, संजय बहादुर सिंह, भूपेंद्र नेगी, सोनू हसन, जितेंद्र जौली, नरेश भण्डारी, संजय आनंद,आदित्य शर्मा, धर्मेंद्र आर्य, सोनू, राहुल बहल, अमन, ललित भण्डारी, श्रीमती शांति रावत, गीता रावत, पुजा आर्य, कुसुम जुयाल, कुसुम बहल, हरजिंदर कौर, हर्षिता भण्डारी, नीलम जुनेजा आदि अनेक नेहरू कॉलोनी वासी उपस्थित रहे। त्यौहार/पर्व भक्ति भावना के साथ साथ, आपसी मिलन एवं भाईचारे को बढ़ाने एवं प्रदर्शित करने का एक सुनहरा मौका होता है, जो आज की इस शोभा यात्रा के अवसर पर दृष्टिगत हुआ। आकाश ज्ञान वाटिका परिवार की ओर से समस्त क्षेत्रवासियों को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें।
[highlight]गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का नौ दिनों तक पूजन किया जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुँचते हैं। नौ दिन बाद गाजे बाजे से श्री गणेश प्रतिमा को किसी तालाब इत्यादि जल में विसर्जित किया जाता है। शिवपुराण में भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेशपुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था।[/highlight]
शिवपुराणके अन्तर्गत रुद्रसंहिता के चतुर्थ खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने उस गजमुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन ! विघ्न नाश करने में तुम्हारा नाम सर्वोपरि होगा।
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