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गुरु पूर्णिमा – एक पारंपरिक और सांस्कृतिक त्यौहार

गुरु पूर्णिमा – एक पारंपरिक और सांस्कृतिक त्यौहार

 गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः । गुरु साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥

गुरु पूर्णिमा भारत का एक पारंपरिक और सांस्कृतिक त्यौहार है जिसे हमारे देश में व्यास पूर्णिमा नाम से जाना जाता है। इस दिन गुरु पूजा का विधान है।आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

यह दिन महाभारत के रचयिता, संस्कृत के प्रकांड विद्वान व्यासका जन्मदिन भी है। उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में “गु” का अर्थ है- ‘अंधकार या मूल अज्ञान’ और “रु” का का अर्थ है- ‘निरोधक’। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है; अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है।

  “अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया, चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः”

गुरु तथा देवता में समानता के लिए कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी।  बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।  गुरु हमें अपने लक्ष्य तक पहुचने के लिए मार्गदर्शन करता है और जब तक हम अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते तब तक वह हमारा मार्गदर्शन करता रहता है। कोई साधू या कोई धार्मिक व्यक्ति हमारा गुरु नहीं हो सकता। सच्चा गुरु वह होता है जो हमें सफल होने के लिए अपना समय दे सके हमारी हर हालत में मदत कर सके । हमारे माता पिता हमारे पहले गुरु होते है जो हमें बचपन से ही सिखाना शुरू कर देते है। स्कूल में जो शिक्षक हमें पढ़ाते है वह हमारे दुसरे गुरु होते है वह हमें समाज और उसकी संस्कृति के बारे में सभी बाते समझाकर बताते है। शिक्षक हम में नैतिकता को विकसित करने में काफी मदत करते है। युवावस्था के बाद पति पत्नी भी एक दुसरे के गुरु बन सकते है।

गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक  बधाई  और शुभकामनायें।
गुरुपूर्णिमा, अपने गुरु जनों प्रति आदर, सत्कार व सद्भावना प्रकट करने का एक पावन पर्व व सुनहरा मौका है । जिनको गुरु जनों का आशिर्वाद प्राप्त होता है तथा जो हमेशा उनका (गुरु जनों का) सम्मान करते है उनका जीवन सदैव सफल रहता है, वे हमेशा प्रगति पथ पर अग्रसर रहते हैं।

 

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Ghanshyam Chandra Joshi

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