मास्क नहीं लगाने और शारीरिक दूरी के नियमों के प्रति लापरवाही करने पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराज़गी
आकाश ज्ञान वाटिका, 4 दिसंबर 2020, शुक्रवार। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच मास्क नहीं लगाने और शारीरिक दूरी के नियमों के प्रति लापरवाही पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा एतराज जताया। शीर्ष अदालत ने कहा कि मास्क नहीं लगाना और शारीरिक दूरी के नियम का पालन नहीं करना दूसरों के मौलिक अधिकारों का हनन है। बहुत से लोग दूसरों के मौलिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि मास्क और शारीरिक दूरी के नियमों का कड़ाई से पालन होना चाहिए, लेकिन लोग बेधड़क पूरे देश में कोरोना के दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के आदेश के उस अंश पर रोक लगा दी जिसमें मास्क नहीं पहनने वालों को कम्युनिटी सर्विस के लिए कोरोना सेंटर भेजने का आदेश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सेहत के खतरे को देखते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है, लेकिन साथ ही गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को आदेश दिया कि वह मास्क पहनने और शारीरिक दूरी के दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन कराएं। हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली गुजरात सरकार की याचिका पर नोटिस भी जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भले ही आंदोलनकारी किसानों का जिक्र नहीं किया, लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर लाखों की संख्या में डटे किसान कोरोना के दिशानिर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। जस्टिस अशोक भूषण, आर. सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की पीठ ने कोरोना के उचित इलाज और संक्रमण से हुई मौतों के मामले में स्वत: संज्ञान लेकर की जा रही सुनवाई के दौरान ये आदेश दिए। गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट के गत बुधवार के आदेश के उस अंश पर रोक लगाने की मांग की जिसमें हाई कोर्ट ने मास्क नहीं लगाने वालों को कोरोना सेंटर में कम्युनिटी सर्विस के लिए भेजने का आदेश दिया था।
केंद्र और गुजरात सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र और गुजरात सरकार ने मास्क लगाने और शारीरिक दूरी के दिशानिर्देश जारी किए हैं जिनका पालन जरूरी है। सार्वजिनक स्थानों पर मास्क नहीं लगाने वालों पर 1,000 रुपये का जुर्माना किया जाता है। नियमों का पालन कराया जा रहा है, लेकिन हाई कोर्ट का गत बुधवार का आदेश बहुत ही कड़ा और जरूरत से ज्यादा दंड है। इसका पालन कराने से व्यक्ति बीमारी के खतरे में आ सकता है।
इन दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि दिशानिर्देश तो हैं, लेकिन उनका पालन नहीं हो रहा। उनका पालन कराने में बहुत ढिलाई है। हाई कोर्ट की मंशा सही रही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादियों और रैलियों में सैकड़ों लोग इकट्ठा होते हैं। पुलिस उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती। जस्टिस शाह ने कहा कि बहुत से लोग दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं। पीठ की इन टिप्पणियों पर मेहता ने कहा कि हमारे और कोरोना के बीच सिर्फ मास्क और शारीरिक दूरी ही है, लेकिन लोग बिना मास्क के घूम रहे हैं। मेहता ने कहा कि लोगों में नियम तोड़ने की प्रवृत्ति देखी जाती है। हेलमेट को ही लें तो उसे पहनने के बजाये दोपहिया वाहन पर टंगा रहता है लोग उसे सिर्फ पुलिसवाले के दिखने पर ही पहनते हैं। पीठ ने कहा कि दिशानिर्देशों के उल्लंघन का यह मामला सिर्फ गुजरात में ही नहीं है बल्कि यह राष्ट्रीय समस्या है। पालन कराने का तंत्र बनाए बगैर सिर्फ जुर्माना बढ़ाने से कुछ नहीं होगा। जस्टिस शाह ने सब्जी मंडियों की भीड़ का जिक्र करते हुए कहा कि बहुत सी सब्जी मंडियां हैं, लोगों को वहां छह फीट की शारीरिक दूरी का पालन करना चाहिए, लेकिन देशभर में कोई इसका पालन नहीं कर रहा। ये वे जगहें हैं जहां तेजी से संक्रमण फैलता है।
दिल्ली की ओर से बताया गया कि उनके यहां कोरोना मरीजों की संख्या में पहले से कमी आई है। सारी चीजों का ध्यान रखा जा रहा है। देश के अन्य हिस्सों और विभिन्न राज्यों में दिशानिर्देशों का पालन नहीं होने की शिकायतों पर कोर्ट ने सालिसिटर जनरल और राज्यों के वकीलों से पालन सुनिश्चित कराने के लिए सात दिसंबर तक सुझाव देने को कहा ताकि इस बावत उचित आदेश दिए जा सकें। वकील गौरव अग्रवाल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में आक्सीजन और बेड्स की कमी है। इस पर कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार से स्थिति रिपोर्ट मांगी है। मामले में नौ दिसंबर को फिर सुनवाई होगी।