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चीनी-रोटी

बचपन के वो दिन………

लेखक : ऑनरी कैप्टेन श्याम काण्डपाल, कांटली, कौसानी

आकाश ज्ञान वाटिका, शनिवार, 14 दिसम्बर 2024, कौसानी।

मैं बचपन में बहुत शैतान था, ऐसा अब लोग कहते हैं क्योंकि बचपन की शैतानियाँ और चंचलतायें आपको खुद पता नहीं होती हैं। हमारा गाँव (कांटली) कोसी नदी के उद्गम में स्थित है। कोसी नदी श्री पिनकेश्वर महादेव मंदिर की तलहटी से निकलती है और शोरगुल करते हुए हमारे गाँव के खेतों को बीच में चीरते हुए निलकती है । कोसी नदी हमारे गाँव के लिये वरदान है। हाँ, कभी-कभी चंचल और क्रुद्ध हो जाती है तो हमें दंड भी देती है। चौमास (बरसात) के महीनों में यह अतर अर्थात पार करने लायक नहीं रहती है।

बात मेरे बचपन की है तो पुरानी ही होगी। उन दिनों नदी पर कोई पुल नहीं था। गाँव वाले आपस में मिलकर इसमें होड़ अथवा लकड़ी का पुल खुद डालते थे। हमारे इलाके में चीड़ के वृक्ष बहुत ज्यादा होते हैं तथा चीड़ के पेड़ बहुत लंबे और सीधे होते हैं। उन्हीं पेड़ों में से दो तीन पेड़ काटकर उसे सपाट कर लेते थे और आवश्यकतानुसार नदी के दो-तीन जगह पर डाल देते थे। गाँव के सभी पुरुष इस काम में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। इस तरह बनाये हुए लकड़ी के पुल चार-पाँच साल चलते थे। बरसा में सभी इस पुल का प्रयोग करते थे पर पशु इस पुल से नहीं जा सकते थे। पशु तो नदी ही पार करते थे।

एक बार की बात है, ऐसे ही चौमास के दिन में मेरे चाचाजी गाय-बैल लेकर जंगल जा रहे थे। मेरी एक अनोखी आदत थी कि जो कोई भी घर से, मेरे सामने से होकर निकलता तो मैं भी उसके पीछे-पीछे चलने लगता तथा मुझे दिगर (साथ) लगने की आदत थी। उस दिन भी मैं उनके पीछे लग गया। चाचाजी ने बहुत समझाया कि नदी बहुत तेज बहाव में है, बच्चे इसे पार नहीं कर सकते और होड़ से होकर जाना भी खतरनाक है। परंतु मैं माना ही नहीं और उनके पीछे चलता गया। कुछ देर बाद चाचाजी एक ओर मुड़ गए और मैं रोते हुए दुसरी तरफ मुड़ गया। मुझे पता ही नहीं चला कि चाचाजी किस ओर गए और और मैं एक रास्ते में चलता ही गया। रोते-रोते नदी के किनारे पहुँच गया और जोर-जोर से रोने लगा। होड़ पार करने की मुझमें हिम्मत ही नहीं थी। नदी के उस पार MES का पम्प हाउस था। उधर एक महिला अपने पति के साथ रहती थी। उनके पति पम्प हाउस में काम करते थे। उन्होंने मुझे देखा तो घर से निकलकर मुझे होड़ पार कराया। मैं सिसक रहा था। वह मुझे अपने घर ले गई। मैं रोता ही जा रहा था। मुझे चुप कराने के लिए उसने मुझे रोटी दी और रोटी में चीनी रख कर खिलाया। मैंने रोटी बहुत चाव से खाई और थोड़ा शांत हुआ और सो गया। घर पर सब परेशान थे, सब जगह खोजने लगे। उस महिला ने मेरे घर पर संदेश भिजवाया तथा घर से मुझे लेने मेरे चाचाजी आए।

बहुत समय बीत गया पर जब कभी बचपन की याद आती है तो उनका धुँधला सा चेहरा मुझे याद आता है। रोटियाँ तो बहुत खाई होंगी तब से, पर उस रोटी और चीनी की आज भी बहुत याद आती है।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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