उपराष्ट्रपति एम. वैंकैया नायडू ने डॉ० अच्युत सामंत की लिखी पुस्तक ‘‘नीलिमारानी : माई मदर-माई हीरो” का किया विमोचन
- [highlight]हमें माँ, मातृभूमि और अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए : उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू[/highlight]
आकाश ज्ञान वाटिका, 14 अप्रैल 2021, बुधवार, भुवनेश्वर। राजभवन में ‘‘नीलिमारानी : माई मदर-माई हीरो” पुस्तक के लोकार्पण समारोह में भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि हमें माँ, मातृभूमि और अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए। ‘आदर्श माँ’ पर लिखी गयी पुस्तक ‘‘माइ मदर-माई हीरो” जाने-माने शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ० अच्युत सामंत द्वारा लिखी गई है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि‘‘हम उद्यमियों, खोजकर्ताओं और वैज्ञानिकों की बायोग्राफी पढ़ते हैं, लेकिन माँ की बायोग्राफी लिखना कुछ अलग और अनोखा है। माँ पर एक जीवनी लिखना बहुत प्रेरणादायक हैं।
ओडिशा के राज्यपाल, प्रो० गणेशी लाल ने पुस्तक विमोचन समारोह की सराहना करते हुए अपने सम्बोधन में कहा कि हमें न केवल मानवता की सेवा करनी चाहिए बल्कि मानवता की पूजा भी करनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे प्रारम्भिक चरण में डॉ० सामंत ने इतनी महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। जब मैं डॉ० अच्युत सामंत को देखता हूँ तो मुझे ठक्कर बापा याद आते हैं”।
इस अवसर पर बोलते हुए डॉ० अच्युत सामंत ने कहा कि वह महिला सशक्तीकरण पर जोर देते रहे हैं क्योंकि उन्होंने बचपन से ही नारी शक्ति को महसूस किया है।
[highlight]‘‘महिला शक्ति एक राष्ट्र और समाज के समग्र विकास में मदद करती है। यदि महिला सशक्तीकरण को महत्व दिया जाए तो राष्ट्र और समाज विकसित हो सकता है” : डॉ० अच्युत सामंत[/highlight]
यह पुस्तक महिलाओं की शक्ति के बारे में है और उन्होंने अपनी माँ का उदाहरण लेकर इसे व्यक्त किया है। डॉ० अच्युत सामंत की माँ नीलिमारानी एक साधारण इंसान थीं, जो समाज की मदद करने के लिए कुछ असाधारण सपने और दूरदृष्टि रखती थीं। उनकी विचारधारा ने समाज के लिए कुछ करने हेतु डॉ० अच्युत सामंत पर गहरा प्रभाव डाला। संघर्षों से भरा जीवन जीते हुए नीलिमारानी एक छोटे से दूरदराज के गाँव को स्मार्ट गाँव और मानपुर को एक स्मार्ट पंचायत के रूप में विकसित कर सकती थीं। कैसे वह हमेशा अपने पैतृक गाँव कलारबंका के विकास के लिए डॉ० सामंत से आग्रह कर रही थीं, यही पुस्तक का मुख्य विषय है।
डॉ० अच्युत सामंत के पिता की आकस्मिक मृत्यु के कारण उनकी माँ नीलिमारानी केवल 40 वर्ष की आयु में ही असहाय हो गई थीं। इस त्रासदी ने उन्हें अकल्पनीय कष्ट और संघर्ष में धकेल दिया। लेकिन उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, सिद्धांतों और संघर्ष को कभी नहीं छोड़ा। अपनी अन्तिम सांस तक वह कलारबंका स्मार्ट गाँव और मानपुर पंचायत के विकास के लिए डॉ० अच्युत सामंत से आग्रह कर रही थीं। डॉ० अच्युत सामंत जो भी हासिल कर रहे हैं, वह सब कुछ उनकी माँ के मूल्य और आदर्शों के कारण है, जो उन्होंने बड़े होने के दौरान उठाए थे। उन्होंने डॉ० अच्युत सामंत को मार्गदर्शन द्वारा तैयार किया कि वह क्या है ? उनकी सारी उपलब्धियाँ उनकी माँ नीलिमारानी को समर्पित हैं।