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करवा चौथ व्रत से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रिवाज

आकाश ज्ञान वाटिका। सौभाग्यवती महिलाओं का व्रत करवा चौथ आज है। करवा चौथ व्रत के कुछ अपने नियम हैं, जिनका पालन जरूरी है। व्रत से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रिवाज हैं, जिसको सभी व्रती म​हिलाएं निभाती हैं। इन सबके बिना करवा चौथ का व्रत अधूरा माना जाता है। इसमें सरगी का उपहार, निर्जला व्रत का विधान, गौरी-गणेश और शिव की पूजा, शिव-गौरी की मिट्टी की मूर्ति बनाना, करवा चौथ की कथा का श्रवण, थाली फेरना आदि शामिल होता है।

  • सरगी का उपहार:  सरगी से ही कौरवा चौथ के व्रत का प्रारंभ माना गया है। हर सास अपनी बहू को सरगी देती है और व्रत पूर्ण होने का आशीर्वाद देती है। सरगी में मिठाई, फल आदि होता है, जो सूर्योदय के समय बहू व्रत से पहले खाती है। जिससे पूरे दिन उसे ऊर्जा मिलती है ताकि वह व्रत आसानी से पूरा कर सके।
  • निर्जला व्रत का विधान: करवा चौथ का व्रत निर्जला रखा जाता है, इसमें व्रत रहने वाले व्यक्ति को पूरे दिन तक कुछ भी खाना और पीना वर्जित रहता है। जल का त्याग करना होता है। व्रती अपने कठोर व्रत से माता गौरी और भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं, ताकि उन्हें अखंड सुहाग और सुखी दाम्पत्य जीवन का आशीर्वाद मिले। हालांकि गर्भवती, बीमार और स्तनपान कराने वाली महिलाएं दूध, चाय, जल आदि ग्रहण कर सकती हैं।
  • शिव और गौरी की पूजा: करवा चौथ के व्रत में सुबह से ही श्री गणेश, भगवान शिव और माता गौरी की पूजा की जाती है, ताकि उन्हें अखंड सौभाग्य, यश एवं कीर्ति प्राप्त हो सके। पूजा में माता गौरी और भगवान शिव के मंत्रों का जाप किया जाता है।
  • ​शिव-गौरी की मिट्टी की मूर्ति: करवा चौथ में पूजा के लिए शुद्ध पीली मिट्टी से शिव, गौरी एवं गणेश जी की मूर्ति बनाई जाती है। फिर उन्हें चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है। माता गौरी को सिंदूर, बिंदी, चुन्नी तथा भगवान शिव को चंदन, पुष्प, वस्त्र आदि पहनाते हैं। श्रीगणेशजी उनकी गोद में बैठते हैं। कई जगहों पर दीवार पर एक गेरू से फलक बनाकर चावल, हल्दी के आटे को मिलाकर करवा चौथ का चित्र अंकित करते हैं। फिर दूसरे दिन करवा चौथ की पूजा संपन्न होने के बाद घी-बूरे का भोग लगाकर उन्हें विसर्जित करते हैं।
  • करवा चौथ की कथा का श्रवण: दिन में पूजा की तैयारी के बाद शाम में महिलाएं एक जगह एकत्र होती हैं। वहां पंडित जी या उम्रदराज म​हिलाएं करवा चौथ की कथा सुनाती हैं।
  • थाली फेरना: करवा चौथ की कथा सुनने के बाद सभी महिलाएं सात बार थालियां फेरती हैं। थाली में वही सामान एवं पूजा सामग्री रखती हैं, जो बयाने में सास को दिया जाएगा। पूजा के बाद सास के चरण छूकर उन्हें बायना भेंट स्वरूप दिया जाता है।
  • करवे और लोटे को सात बार फेरना: करवे और लोटे को भी सात बार फेरने का विधान है। इससे तात्पर्य है कि घर की स्त्रियों में परस्पर प्रेम और स्नेह का बंधन है। साथ मिलकर पूजा करें और कहानी सुनने के बाद दो-दो महिलाएं अपने करवे सात बार फेरती हैं, जिससे घर में सभी प्रेम के बंधन में मजबूती से जुड़े रहें।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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